आज प्रथम नवरात्र 25.09.2014 से हर दिन का एक श्लोक शब्दार्थ एवं भावार्थ सहित अपलोड करेंगे। इसमें कई महापुरूषों तथा संतो की टीका से सहायता लेकर, आज के संदर्भ में लिखने की कोशिश है। भगवान से हर शब्द लिखने में सहायता की पुकार करता हूं ताकि मूल भाव बना रहे ।

अध्याय क्रंमाक/ਪਾਠ ਨੰਬਰ/Chapter Number    1  2  3  4  5  6  7  8  9  10  11 12 13  14  15  16  17  18

अध्याय एक/Chapter One/ਪਾਠ ਇੱਕ
अर्जुनविषादयोगः

बिना श्लोक केवल हिंदी अर्थ  ਸ਼ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਬਿਨਾ ਸਿਰਫ ਪੰਜਾਬੀ ਅਰਥ  English Translation of Chapter 1 without Verses  
बिना श्लोक केवल हिंदी टीका  ਸ਼ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਬਿਨਾ ਸਿਰਫ ਪੰਜਾਬੀ ਟੀਕਾ  English Commentary of Chapter 1 without Verses  

श्लोक संख्या /ਸ਼ਲੋਕ ਨੰਬਰ/ Verse No.
1.1 1.2 1.3 1.4 1.5 1.6 1.7 1.8 1.9 1.10 1.11 1.12 1.13 1.14 1.15 1.16 1.17 1.18 1.19 1.20 1.21 1.22 1.23 1.24 1.25
 1.26 1.27 1.28 1.29 1.30 1.31 1.32 1.33 1.34 1.35 1.36 1.37 1.38 1.39 1.40 1.41 1.42 1.43 1.44 1.45 1.46 1.47 

धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।१।।

शब्दार्थ
धर्मक्षेत्रे- ऐतिहासिक पवित्र स्थान एवं तीर्थ स्थल
कुरूक्षेत्रे- कुरूक्षेत्र नामक स्थान
समवेता- समान भाव से एकत्र होना
युयुत्सवः- युध्द की ईच्छा से
मामकाः- मेरे
पाण्डवाश्चैव- तथा पाण्डवों
किमकुर्वत- क्या किया
सञ्जय- सञ्जय नामक व्यक्ति
भावार्थ
धृतराष्ट्र ने कहा- हे सञ्जय, धर्मस्थान कुरूक्षेत्र में युध्द की ईच्छा से एकत्र हुए , मेरे पुत्रों तथा पाण्डवों ने क्या किया।1.1।
ਧ੍ਰਿਤਰਾਸ਼ਟ੍ਰ ਨੇ ਕਿਹਾ- ਹੇ ਸੰਜੇ, ਧਰਮ ਖੇਤਰ ਕੁਰੂਖੇਤਰ ਵਿਖੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਇੱਛਾ ਨਾਲ ਇਕੱਠੇ ਹੋਏ, ਮੇਰੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਅਤੇ ਪਾੰਡਵਾਂ ਨੇ ਕੀ ਕੀਤਾ।1.1।
Dhritarashtra said: O Sanjaya! Gathered at the holy place of Kurukshetra with the desire to war, what are my sons and pandavas doing? ।1.1।


सञ्जय उवाच
दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसङग़म्य राजा वचनमब्रवीत ।।२।।

शब्दार्थ
दृष्टवा- देखकर
तु- तरफ
पाण्डवानीकं- पाण्डव सेना की
व्यूढं- व्यूहरचना
दुर्योधनस्तदा- दुर्योधन ने तब/ उस समय
आचार्यमुपसङग़म्य- आचार्य (द्रोण) के पास जाकर
राजा- राजा
वचनमब्रवीत- वचन कहे
भावार्थ
सञ्जय ने कहा- हे राजन, पाण्डव सेना की व्यूहरचना देखकर, दुर्योधन उस समय आचार्य द्रोण के पास जाकर बोला।1.2।
ਸੰਜੇ ਨੇ ਕਿਹਾ- ਹੇ ਰਾਜਨ, ਪਾੰਡਵ ਸੈਨਾ ਦੀ ਵਿਯੂ-ਰਚਨਾ ਦੇਖਕੇ, ਦੁਰਯੋਧਨ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦ੍ਰੋਣਾਚਾਰਿਆ ਦੇ ਕੋਲ ਜਾ ਕੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ ।1.2।
Sanjaya said: O king, after seeing the specific military formation of the Pandava army, Duryodhana went to Guru Dronacharya and said.।1.2।


पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ।।३।।

शब्दार्थ
पश्यैतां- उनको देखिए
पाण्डुपुत्राणामाचार्य- हे आचार्य, पाण्डुपुत्रों को
महतीं - विशाल
चमूम् - सेना
व्यूढां - व्यूहरचना में
द्रुपदपुत्रेण - द्रुपद के पुत्र ने
तव - तुम्हारे
शिष्येण - शिष्य ने
धीमता- बुद्धिमान
भावार्थ
हे आचार्य, देखिए, आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र (धृष्टद्युम्न) ने पाण्डुपुत्रों की विशाल सेना की व्यूहरचना की है।1.3।
ਹੇ ਆਚਾਰਿਆ- ਦੇਖੋ, ਤੁਹਾਡੇ ਬੁੱਧੀਮਾਨ ਚੇਲੇ ਦ੍ਰੁਪਦ ਦੇ ਪੁੱਤਰ (ਧ੍ਰਿਸ਼ਟਦੁਮਨ) ਨੇ ਪਾਂਡੂ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦੀ ਵੱਡੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਵਿਯੂ-ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ਹੈ।1.3।
O my coach! look, your intelligent disciple, the son of Drupada (Dhrishtadyumna) has planned the expert military formation of vast army of 'sons of Pandu'.।1.3।


अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।।४।।

शब्दार्थ
अत्र - यहां
शूरा - वीर
महेष्वासा - महान धनुर्धर
भीमार्जुनसमा - भीम तथा अर्जुन के समान
युधि- योद्धा
युयुधानो- युयुधान (नाम)
विराटश्च- विराट (नाम)
द्रुपदश्च - द्रुपद (नाम)
महारथः - महारथी (दस हजार योद्धा के बराबर)
भावार्थ
यहां भीम के समान वीर तथा अर्जुन के समान महान धनुर्धर योद्धा हैं तथा युयुधान,विराट और द्रुपद जैसे महारथी हैं।1.4।
ਇਥੇ ਭੀਮ ਵਰਗੇ ਵੀਰ ਅਤੇ ਅਰਜੁਨ ਵਰਗੇ ਮਹਾਨ ਧਨੁਰਧਾਰੀ ਯੋਧੇ ਹਨ ਅਤੇ ਯੁਯੁਧਾਨ, ਵਿਰਾਟ ਅਤੇ ਦ੍ਰੁਪਦ ਵਰਗੇ ਮਹਾਰਥੀ ਹਨ।1.4।
Here we have heroic warriors like Bheema and great archers like Arjuna and great fighters (equivalent to ten thousand armed people) such as Yuyudhaan, Virat and Drupada.।1.4।


धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् ।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङग़वः ।।५।।

शब्दार्थ
धृष्टकेतुश्चेकितानः- धृष्टकेतु (नाम) तथा चेकितान (नाम)
काशिराजश्च- काशिराज
वीर्यवान् - पराक्रमी
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च- पुरुजित (नाम) तथा कुन्तिभोज (नाम)
शैब्यश्च - शैब्य (नाम)
नरपुङग़वः- श्रेष्ठ मनुष्यों में से
भावार्थ
धृष्टकेतु , चेकितान तथा काशिराज जैसे पराक्रमी एवं कुन्तिभोज-पुरुजित तथा शैब्य जैसे श्रेष्ठ वीर (भी) हैं।1.5।
ਧ੍ਰਿਸ਼ਟਕੇਤੁ, ਚੇਕਿਤਾਨ ਅਤੇ ਕਾਸ਼ੀਰਾਜ ਜਿਹੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਤੇ ਕੁੰਤੀਭੋਜ-ਪੁਰੁਜਿਤ ਅਤੇ ਸ਼ੈਬ ਜਿਹੇ ਮਹਾਨ ਵੀਰ (ਭੀ ਖੜੇ) ਹਨ।1.5।
Warriors as mighty as Dhrishtaketu, Chekitana and Kashiraja and best fighters like Kuntibhoja-Purujit and Shaibya (are also there).।1.5।


युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ।।६।।

शब्दार्थ
युधामन्युश्च - युधामन्यु (नाम)
विक्रान्त - साहसी
उत्तमौजाश्च - उत्तमौजा (नाम)
वीर्यवान् - पराक्रमी
सौभद्रो - सुभद्रापुत्र
द्रौपदेयाश्च - द्रौपदी के पुत्र
सर्व एव- ये सभी
महारथाः - महारथी ( रथ पर विभिन्न प्रकार के युद्ध में निपुण )
भावार्थ
साहसी युधामन्यु एवं पराक्रमी उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पाँचों पुत्र, ये सभी महारथी हैं ।1.6।
ਸਾਹਸੀ ਯੁਧਾਮਨਯੂ ਅਤੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਉੱਤਮੋਜਾ, ਸੁਭੱਦ੍ਰਾਪੁੱਤਰ ਅਭਿਮੰਨਯੂ ਅਤੇ ਦ੍ਰੋਪਦੀ ਦੇ ਪੰਜੋ ਪੁੱਤਰ, ਇਹ ਸਾਰੇ ਮਹਾਰਥੀ ਹਨ।1.6।
Mighty Yudhamanyu, brave Uttamauja, Subhadra's son-Abhimanyu and Draupadi's five sons are all strong chariot fighters.।1.6।


अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम ।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥७॥

शब्दार्थ
अस्माकं तु - हमारे भी
विशिष्टा ये - जो विशेष हैं
तान्निबोध- उनका ध्यान
द्विजोत्तम - ब्राह्मणश्रेष्ठ
नायका - नेतृत्व करने वाले
मम- मेरी
सैन्यस्य- सेना के
संज्ञार्थं - ध्यान के लिए
तान्ब्रवीमि ते- उनका बताता हूं
भावार्थ
हे ब्राह्मणश्रेष्ठ , आपके ध्यान के लिए हमारे जो भी विशेष तथा नेतृत्व करने वाले सेना नायक हैं, उनकी जानकारी देता हूं।1.7।
ਹੇ ਮਹਾਨ ਬ੍ਰਾਹਮਣ, ਤੁਹਾਡੇ ਧਿਆਨ ਲਈ ਸਾਡੇ ਧਿਰ ਵਿੱਚ ਜਿਹੜੇ ਵੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਤੇ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੈਨਾਪਤੀ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇਂਦਾ ਹਾਂ।1.7।
O best of intelligentsia, for your information and attention, I am giving you the information of our commandants who are special and able to lead our force.।1.7।


भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः ।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥८॥

शब्दार्थ
भवान्भीष्मश्च-आप और भीष्म (नाम)
कर्णश्च- कर्ण (नाम)
कृपश्च - कृपाचार्य (नाम)
समितिञ्जयः- युद्ध में विजयी रहने वाले
अश्वत्थामा - अश्वत्थामा (नाम)
विकर्णश्च - विकर्ण (नाम)
सौमदत्तिस्तथैव च - तथा सौमदत्त का पुत्र
भावार्थ
द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म, कर्ण, संग्रामविजयी कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा ।1.8।
ਦ੍ਰੋਣਾਚਾਰਿਆ, ਪਿਤਾਮਾਹ ਭੀਸ਼ਮ, ਕਰਨ , ਸੰਗ੍ਰਾਮ ਵਿਜੇਤਾ ਕ੍ਰਿਪਾਚਾਰਿਆ, ਅਸ਼ਵੱਤਥਾਮਾ, ਵਿਕਰਣ ਅਤੇ ਸੋਮਦੱਤ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਭੂਰੀਸ਼੍ਰਵਾ।1.8।
Dronacharya, grandfather Bhishma, Karna, always victorious Kripacharya and Ashwatthama, Vikarn and Somdutta's Bhurishrava.।1.8।


अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥९॥

शब्दार्थ
अन्ये च - और भी
बहवः- बहुत
शूरा- वीर
मदर्थे- मेरे लिए
त्यक्तजीविताः- जीवन त्याग देने वाले
नानाशस्त्रप्रहरणाः- अनेक प्रकार के शस्त्रों के ज्ञाता
सर्वे - सभी
युद्धविशारदाः - युद्ध में निपुण
भावार्थ
और भी बहुत वीर मेरे लिए जीवन त्याग सकते हैं जो कि अनेक प्रकार के शस्त्र चलाने में तथा युद्ध करने में निपुण हैं।1.9।
ਹੋਰ ਵੀ ਬਹੁਤ ਵੀਰ ਮੇਰੇ ਲਈ ਜੀਵਨ ਤਿਆਗ ਸਕਦੇ ਹਨ ਜੋ ਕਿ ਕਈ ਕਿਸਮ ਦੇ ਹਥਿਆਰ ਚਲਾਉਣ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਯੁੱਧ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮਾਹਰ ਹਨ।1.9।
There are many other brave warriors who can sacrifice their lives for me. They are versed in operating many types of weapons and fighting a war.।1.9।


अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् ।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ॥१०॥

शब्दार्थ
अपर्याप्तं - पूरी नहीं है
तदस्माकं- हमारी
बलं - शक्ति
भीष्माभिरक्षितम् - भीष्म द्वारा रक्षित
पर्याप्तं - पूरी है
त्विदमेतेषां - परन्तु उन की
बलं - शक्ति
भीमाभिरक्षितम् - भीम द्वारा रक्षित
भावार्थ
भीष्म पितामह द्वारा रक्षित होकर भी हमारी शक्ति पर्याप्त नहीं है परन्तु उन की शक्ति भीम द्वारा रक्षित होकर भी पूरी है। (दुर्योधन को ऐसा लगता है क्योंकि भीष्म पितामह मन से पांङवों की विजय चाहते थे परन्तु भीम उत्साह से भरा था और कौरवों से बदला लेना चाहता था)।1.10।
ਭੀਸ਼ਮ ਪਿਤਾਮਾਹ ਪਾਸੋਂ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਹੋ ਕੇ ਵੀ ਸਾਡੀ ਤਾਕਤ ਕਾਫੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ਪ੍ਰੰਤੂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਤਾਕਤ ਭੀਮ ਪਾਸੋਂ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਹੋ ਕੇ ਵੀ ਪੂਰੀ ਹੈ। (ਦੁਰਯੋਧਨ ਨੂੰ ਅਜਿਹਾ ਲਗਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਭੀਸ਼ਮ ਪਿਤਾਮਾਹ ਦਿਲੋਂ ਪਾਂਡਵਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਪ੍ਰੰਤੂ ਭੀਮ ਜੋਸ਼ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਕੌਰਵਾਂ ਤੋਂ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ)।1.10।
Though being secured by grandfather Bhishma, their power is not enough. However, the other team's power is enough even though it is secured by Bheema. (Duryodhana thinks so because Bhishma internally wishes victory for the Pandavas. But, Bheema is full of enthusiasm because he wants to take revenge from the Kauravas.)।1.10।


अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥११॥

शब्दार्थ
अयनेषु च- मोर्चों पर
सर्वेषु - सब ओर से
यथाभागमवस्थिताः - अपने स्थान पर खङे
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु - भीष्म की सुरक्षा करें
भवन्तः- आप
सर्व - सभी
एव हि - निश्चय ही
भावार्थ
निश्चय ही, आप सभी अपने मोर्चों पर डटे सब ओर से भीष्म की सुरक्षा करें। (वो हमारे पक्ष में अमूल्य हैं)।1.11।
ਤੁਸੀਂ ਸਾਰੇ ਆਪਣੇ ਮੋਰਚੇ ਨੂੰ ਸਾਂਭਦੇ ਹੋਏ ਸਾਰਿਆਂ ਪਾਸੋਂ ਭੀਸ਼ਮ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਕਰੋ। (ਉਹ ਸਾਡੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਬਹੁਮੁੱਲੇ ਹਨ)।1.11।
Keep in mind, Standing firm at all strategic points in all directions, all of you need to protect Bhishma. (He is indispensable in our favor.)।1.11।


तस्य सञ्जनयन् हर्षं कुरुवृद्ध: पितामह: ।
सिंहनादं विनद्योच्चै: शंखं दध्मौ प्रतापवान् ॥१२॥

शब्दार्थ
तस्य सञ्जनयन् - उसकी आंखो में उत्पन्न करते हुए
हर्षं - खुशी
कुरुवृद्ध: - कौरवों में बड़े
पितामह: - पितामह
सिंहनादं - सिंह की आवाज में
विनद्योच्चै: - गरजकर उच्च स्वर से
शंखं - शंखं
दध्मौ- बजाया
प्रतापवान् - प्रतापी
भावार्थ
कौरवों में बड़े, प्रतापी भीष्म पितामह ने दुर्योधन की आंखो में खुशी उत्पन्न करते हुए गरजकर सिंह की आवाज में शंखं बजाया।1.12।
ਕੌਰਵਾਂ ਦੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਤੇ ਪ੍ਰਤਾਪੀ ਭੀਸ਼ਮ ਪਿਤਾਮਾਹ ਨੇ ਸਿੰਘ ਦੀ ਦਹਾੜ ਦੀ ਤਰਾਂ ਸ਼ੰਖ ਵਜਾਇਆ ਜਿਸ ਨੂੰ ਸੁਣ ਕੇ ਦੁਰਯੋਧਨ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਖੁਸ਼ੀ ਦਿਖਾਈ ਦਿੱਤੀ।1.12।
Generating happiness in the eyes of Duryodhana, majestic grandfather Bhishma blew his conch, roaring like a lion.।1.12।



तत: शंड़्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा: ।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥१३॥

शब्दार्थ
तत: - इसके बाद
शंड़्खाश्च - शंख
भेर्यश्च - नगाड़े
पणवानकगोमुखा:-ढोल, मृदंग और नरसिंघे (वाद्य यंत्र)
सहसैवाभ्यहन्यन्त - एक साथ ही बज उठे
स शब्दस्तुमुलोऽभवत् - वह शब्द भयंकर हुआ
भावार्थ
इसके बाद शंख, नगाड़े, ढोल, मृदंग और नरसिंघे (अलग अलग वाद्य यंत्र) एक साथ ही बज उठे । वह उच्च स्वर का कोलाहल था।1.13।
ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸ਼ੰਖ, ਨਗਾੜੇ, ਢੋਲ, ਮ੍ਰਿਦੰਗ ਅਤੇ ਨਰਸਿੰਘੇ (ਸੰਗੀਤ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਾਜੇ) ਇਕੱਠੇ ਹੀ ਵਜੱਣ ਲਗੇ। ਬੜੇ ਜੋਰ ਦਾ ਸ਼ੋਰਗੁਲ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ।1.13।
Then conch shells, drums, bugles, trumpets, bells and other different musical instruments rang. It was a loud cacophony altogether.।1.13।


ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंङ्खौ प्रदध्मतुः ॥१४॥

शब्दार्थ
ततः- तब
श्वेतैर्हयैर्युक्ते - सफेद घोङों से जुते हुए
महति - विशाल
स्यन्दने - रथ पर
स्थितौ- बैठे हुए
माधवः - श्रीकृष्ण का नाम
पाण्डवश्चैव - पाण्डव (अर्जुन)
दिव्यौ - अलौकिक
शंङ्खौ - शंख
प्रदध्मतुः- बजाए
भावार्थ
इसके पश्चात सफेद घोङों से जुते हुए विशाल रथ पर बैठे हुए श्रीकृष्ण तथा अर्जुन ने (अपने पक्ष का उत्साह वर्धन करने के लिए) अपने अलौकिक शंख बजाए।1.14।
ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਚਿੱਟੇ ਘੋੜਿਆਂ ਵਾਲੇ ਵੱਡੇ ਰੱਥ ਉੱਪਰ ਬੈਠੇ ਹੋਏ ਭਗਵਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਅਤੇ ਅਰਜੁਨ ਨੇ (ਆਪਣੇ ਧਿਰ ਦਾ ਜੋਸ਼ ਵਧਾਉਣ ਲਈ) ਆਪਣੇ ਅਲੌਕਿਕ ਸ਼ੰਖ ਵਜਾਏ।1.14।
After this, Lord Krishna and Arjuna, sitting on huge chariot drawn by white horses blown their supernatural (transcendental) conch shells (To increase the motivation of their side).।1.14।


पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः ।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ॥१५॥

शब्दार्थ
पाञ्चजन्यं- पाञ्चजन्य
हृषीकेशो- हृषीकेश (श्रीकृष्ण का नाम)
देवदत्तं -देवदत्त नामक शंख
धनञ्जयः-धनञ्जय (अर्जुन का नाम)
पौण्ड्रं -पौण्ड्रं नामक शंख
दध्मौ - बजाए
महाशङ्खं - दिव्य शंख
भीमकर्मा - विशाल तथा मानवीय शक्ति से परे के कार्य
वृकोदरः - भीम का नाम (ज्यादा खाने की वजह से)
भावार्थ
श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य , अर्जुन ने देवदत्त तथा मानवीय शक्ति से परे के कार्य करने वाले भीम ने पौण्ड्रं नामक दिव्य शंख बजाए।1.15।
ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਨੇ ਪਾਂਚਜੰਨਯ, ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਦੇਵਦੱਤ ਅਤੇ ਮਨੁੱਖੀ ਤਾਕਤ ਤੋਂ ਪਰੇ ਦੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ, ਭੀਮ ਨੇ ਪੌਂਡਰ ਨਾਮ ਦੇ ਦੈਵੀ ਸ਼ੰਖ ਵਜਾਏ।1.15।
Lord Krishna blew conch shell named Panchjanya, Arjuna blew Devdutta and herculean task-doer Bheema (who was able to do the work beyond human power) blew the conch shell named Paundra.।1.15।


अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥१६॥

शब्दार्थ
अनन्तविजयं - अनन्तविजय नामक शंख
राजा - राजा
कुन्तीपुत्रो - कुन्ती पुत्र
युधिष्ठिरः- युधिष्ठिर
नकुलः - नकुल (पाण्डव)
सहदेवश्च - सहदेव (पाण्डव)
सुघोषमणिपुष्पकौ - सुघोष नामक शंख तथा मणिपुष्पक नामक शंख
भावार्थ
कुन्ती पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय तथा नकुल सहदेव ने सुघोष तथा मणिपुष्पक नामक शंख बजाए।1.16।
ਕੁੰਤੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਰਾਜਾ ਯੁਧਿਸ਼ਠਿਰ ਨੇ ਅਨੰਤਵਿਜੈ ਅਤੇ ਨਕੁਲ ਸਹਦੇਵ ਨੇ ਸੁਘੋਸ਼ ਅਤੇ ਮਣੀਪੁਸ਼ਪਕ ਨਾਮ ਦੇ ਸ਼ੰਖ ਵਜਾਏ।1.16।
Son of Kunti, King Yudhishtira, blew Anantvijaya and Nakul Sahdeva blew the conch shells named Sughosha and Manipushpak respectively.।1.16।


काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः ।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥१७॥

शब्दार्थ
काश्यश्च - काशिराज
परमेष्वासः - महान धनुर्धर
शिखण्डी च - शिखण्डी
महारथः- महारथी
धृष्टद्युम्नो- धृष्टद्युम्न
विराटश्च - विराटराज
सात्यकिश्चापराजितः- अजेय सात्यकि
भावार्थ
महान धनुर्धर काशिराज, महारथी शिखण्डी, अजेय धृष्टद्युम्न, विराटराज तथा सात्यकि (ने अपने अपने शंख बजाए) ।1.17।
ਮਹਾਨ ਤੀਰਅੰਦਾਜ ਕਾਸ਼ੀਰਾਜ, ਬੇਮਿਸਾਲ ਸ਼ਿਖੰਡੀ, ਅਜਿੱਤ ਧ੍ਰਿਸ਼ਟਦੁਮਨ, ਵਿਰਾਟਰਾਜ ਅਤੇ ਸਾਤਯਕਿ (ਨੇ ਆਪਣੇ- ਆਪਣੇ ਸ਼ੰਖ ਵਜਾਏ)।1.17।
Great archer King of Kashi, heroic warrior Shikhandi, invincible Dhrishtadhyumana, king of Virata and Satayki (blew their own conch shells individually).।1.17।


द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते ।
सौभद्रश्च महाबाहुः शंड़्खान्दध्मुः पृथक्पृथक् ॥१८॥

शब्दार्थ
द्रुपदो - द्रुपद
द्रौपदेयाश्च - द्रौपदी के पुत्र
सर्वशः - सभी
पृथिवीपते - हे राजन (धृतराष्ट्र)
सौभद्रश्च - सौभद्रा का पुत्र (अभिमन्यु)
महाबाहुः - शक्तिशाली भुजावाले
शंड़्खान्दध्मुः - शंख बजाए
पृथक्पृथक् - अलग अलग
भावार्थ
हे राजन - द्रुपद, द्रौपदी के पुत्रों तथा शक्तिशाली भुजाओं वाले अभिमन्यु ने अपने अलग अलग शंख बजाए।1.18।
ਹੇ ਰਾਜਨ – ਦ੍ਰੁਪਦ ਨੇ, ਦ੍ਰੋਪਦੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਅਤੇ ਤਾਕਤਵਰ ਭੁਜਾਵਾਂ ਵਾਲੇ ਅਭਿਮੰਨਯੁ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸ਼ੰਖ ਵਜਾਏ।1.18।
O King! Drupada, Sons of Draupadi and mighty armed Abhimanyu blew their conch shells.।1.18।


स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् ।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन् ॥१९॥

शब्दार्थ
स घोषो - इस आवाज (शंखों का नाद)
धार्तराष्ट्राणां - कौरवों के
हृदयानि - हृदय
व्यदारयत् -विदीर्ण कर दिए (भेद दिए)
नभश्च - आकाश
पृथिवीं चैव - और पृथ्वी
तुमुलो - घोर (भयानक)
व्यनुनादयन् - गुंजा दिया
भावार्थ
सभी शंखों के घोर नाद ने आकाश और पृथ्वी को गुंजा दिया और कौरवों के हृदय विदीर्ण कर दिए।1.19।
ਸਾਰੇ ਸ਼ੰਖਾਂ ਦੀ ਜੋਰਦਾਰ ਅਵਾਜ ਨੇ ਜਮੀਨ ਆਸਮਾਂ ਨੂੰ ਗੁੰਜਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕੌਰਵਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਚੀਰ ਦਿੱਤਾ ।1.19।
Combined sound of conch shells echoed in the sky and on the earth, it shattered the hearts of the Kauravas.।1.19।


अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः ।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ॥२०॥
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।

शब्दार्थ
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा - इस व्यवस्था में (युद्ध की तैयारी में डटे) देखकर
धार्तराष्ट्रान् - कौरवों को
कपिध्वजः - वानर युक्त ध्वज
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते- सभी शस्त्रों से सम्पन्न
धनुरुद्यम्य- धनुर्धारी
पाण्डव- पाण्डव (अर्जुन)
हृषीकेशं - श्रीकृष्ण का नाम
तदा वाक्यमिदमाह - यह वचन कहे
महीपते - हे राजन
भावार्थ
हे राजन, कौरवों को युद्ध की तैयारी में डटे देखकर वानर (हनुमान जी का चिन्ह) ध्वजा युक्त तथा सभी शस्त्रों से सम्पन्न रथ पर बैठे धनुर्धारी अर्जुन ने श्रीकृष्ण से यह वचन कहे ।1.20।
ਹੇ ਰਾਜਨ, ਕੌਰਵਾਂ ਨੂੰ ਯੁੱਧ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਵਿੱਚ ਲੱਗੇ ਦੇਖਕੇ ਵਾਨਰ (ਹਨੂੰਮਾਨ ਜੀ ਦੇ ਨਿਸ਼ਾਨ) ਵਾਲਾ ਝੰਡਾ ਲਗੇ ਹੋਏ ਅਤੇ ਸਾਰੇ ਹਥਿਯਾਰਾਂ ਨਾਲ ਸਜੇ ਰੱਥ ਉੱਪਰ ਬੈਠੇ ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਭਗਵਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਨੂੰ ਇਹ ਵਚਨ ਕਹੇ।1.20।
O King! After seeing the Kauravas, prepared for battle, bowman Arjuna, seated in the chariot bearing the flag marked with Hanuman and equipped with all the equipment of war, spoke these words to Lord Krishna.।1.20।


अर्जुन उवाच
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥२१॥

शब्दार्थ
सेनयोरुभयोर्मध्ये - दोनों सेनाओं के बीच में
रथं स्थापय - रथ खड़ा कीजिए
मेऽच्युत- अच्युत (श्रीकृष्ण का नाम)
भावार्थ
अर्जुन ने कहा - हे अच्युत , दोनों सेनाओं के बीच में रथ खड़ा कीजिए।1.21।
ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਕਿਹਾ – ਹੇ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ, ਰੱਥ ਨੂੰ ਦੋਵਾਂ ਸੇਨਾਵਾਂ ਦੇ ਮੱਧ ਵਿੱਚ ਖੜਾ ਕਰ ਦੇਵੋ।1.21।
Arjuna said- O Lord Krishna, please draw my chariot in between the two armies.।1.21।


यावदेतान्निरीक्षे‍ऽहं योद्धुकामानवस्थितान् ।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥२२॥

शब्दार्थ
यावदेतान्निरीक्षे‍ऽहं - पहले देख लूँ
योद्धुकामानवस्थितान्- युद्ध की अभिलाषा में खड़े
कैर्मया सह- किन-किन के साथ
योद्धव्यमस्मिन् -युद्ध करना है
रणसमुद्यमे- इस रण में
भावार्थ
पहले देख लूँ कि इस रण में युद्ध की अभिलाषा में खड़े किन-किन के साथ मुझे युद्ध करना है।1.22।
ਪਹਿਲਾਂ ਨਜ਼ਰ ਦੋੜਾ ਲਵਾਂ ਕਿ ਇਸ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਲੜਾਈ ਕਰਨ ਦੀ ਇੱਛਾ ਨਾਲ ਖੜੇ ਕਿੰਨਾ-ਕਿੰਨਾ ਦੇ ਨਾਲ ਮੈਨੂੰ ਲੜ੍ਹਨਾ ਹੈ।1.22।
First I want to see , the people standing with the desire for war, and with whom I have to fight.।1.22।


योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धेप्रियचिकीर्षवः ॥२३॥

शब्दार्थ
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं - मैं युद्ध करने वालों को देखूँ
य एतेऽत्र - जो यहां
समागताः - साथ आए हैं
धार्तराष्ट्रस्य - कौरवों का
दुर्बुद्धे - दुष्ट बुद्धी
युद्धे - युद्ध
प्रियचिकीर्षवः- प्रिय करने के लिए
भावार्थ
मैं प्रतिपक्ष में युद्ध करने वालों को देखना चाहता हूं जो दुष्ट बुद्धी कौरवों का प्रिय करने के लिए आए हैं।1.23।
ਮੈਂ ਵਿਰੋਧੀ ਪੱਖ ਵਲੋਂ ਲੜ੍ਹਣ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਦੇਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ਜੋ ਦੁੱਸ਼ਟ ਬੁੱਧੀ ਕੌਰਵਾਂ ਦਾ ਭਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਆਏ ਹਨ।1.23।
I want to see the warriors standing to fight on the other side who are here to please the evil minded Kauravas.।1.23।


संजय उवाच
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥२४॥

शब्दार्थ
एवमुक्तो - (अर्जुन के) इस तरह कहने पर
हृषीकेशो - श्रीकृष्ण ने
गुडाकेशेन - अर्जुन
भारत- हे धृतराष्ट्र
सेनयोरुभयोर्मध्ये - दोनों सेनाओं के बीच में
स्थापयित्वा- स्थापित किया
रथोत्तमम्-श्रेष्ठ रथ
भावार्थ
संजय ने कहा, हे धृतराष्ट्र, अर्जुन के इस तरह कहने पर श्रीकृष्ण ने श्रेष्ठ रथ को दोनों सेनाओं के बीच में स्थापित किया।1.24।
ਸੰਜੇ ਨੇ ਕਿਹਾ, ਧ੍ਰਿਤਰਾਸ਼ਟ੍ਰ, ਅਰਜੁਨ ਦੇ ਇਸ ਤਰਾਂ ਕਹਿਣ ਤੇ ਭਗਵਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਨੇ ਉੱਤਮ ਰੱਥ ਨੂੰ ਦੋਵਾਂ ਸੈਨਾਵਾਂ ਦੇ ਮੱਧ ਵਿੱਚ ਖੜ੍ਹਾ ਦਿੱਤਾ।1.24।
Sanjay Said, O King Dhritrashtra, As per the request of Arjuna, Lord Krishna drew the excellent chariot in between both the armies.।1.24।


भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् ।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति ॥२५॥

शब्दार्थ
भीष्मद्रोणप्रमुखतः - भीष्म और द्रोण के सामने
सर्वेषां च - और सब जगह के
महीक्षिताम् - राजाओं के
उवाच - बोले
पार्थ - अर्जुन
पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति- कौरव नीति के पक्ष में एकत्रित हुओं को देखो
भावार्थ
भीष्म , द्रोण और सब जगह के राजाओं के मध्य श्री कृष्ण बोले, हे अर्जुन, कौरव नीति के पक्ष में एकत्रित हुओं को देखो।1.25।
ਭੀਸ਼ਮ, ਦ੍ਰੋਣ ਅਤੇ ਸਭ ਜਗ੍ਹਾ ਦੇ ਰਾਜਾਵਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਲੇ ਭਗਵਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਬੋਲੇ, ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਕੌਰਵ ਨੀਤੀ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਖੜੇ ਹੋਇਆਂ ਨੂੰ ਦੇਖ ।1.25।
Standing in front of Bhishma, Drona and Kings of the world- Lord Krishna said, O Arjuna, See all these people assembled to support Kaurava's policy.।1.25।


तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितृनथ पितामहान् ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥२६॥
श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।

शब्दार्थ
तत्रापश्यत्स्थितान् - उनको देखने के बाद
पार्थः - अर्जुन
पितृनथ - पिता समान
पितामहान्- पिता के पिता समान
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा-गुरुओं, मामाओं , भाइयों, पुत्रों, पौत्रों तथा मित्रों
श्वशुरान् - ससुरों
सुहृदश्चैव - सुहृदों
सेनयोरुभयोरपि-दोनों सेनाओं में स्थित
भावार्थ
उनको देखने के बाद अर्जुन ने दोनों सेनाओं में स्थित पिता समान तथा दादा समान लोगों, गुरुओं, मामाओं , भाइयों, पुत्रों, पौत्रों , मित्रों , ससुरों तथा सुहृदों को देखा।1.26।
ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੇਖਣ ਮਗਰੋਂ ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਦੋਵਾਂ ਸੇਨਾਵਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਖੜੇ ਆਪਣੇ ਤਾਏ, ਚਾਚੇ (ਪਿਤਾ ਸਮਾਨ) ਅਤੇ ਦਾਦਿਆਂ ਵਰਗੇ ਲੋਕਾਂ, ਗੁਰੂਆਂ, ਮਾਮੇ, ਭਰਾਵਾਂ, ਪੁੱਤਰਾਂ, ਪੋਤਰੇਆਂ, ਮਿੱਤਰਾਂ, ਸੋਹਰੇ ਅਤੇ ਸੁਹਿਰਦੇਆਂ ਨੂੰ ਦੇਖਿਆ।1.26।
There Arjuna, within the midst of both armies, saw his fathers, grandfathers, teachers, maternal uncles, brothers, sons, grandsons, friends, fathers-in-laws and well-wishers.।1.26।


तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ॥२७॥
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ।

शब्दार्थ
तान्समीक्ष्य- उन को देखकर
स कौन्तेयः - अर्जुन
सर्वान्बन्धूनवस्थितान् - सम्पूर्ण बंधुओं को उपस्थित
कृपया- करूणा से
परयाविष्टो- भऱ कर
विषीदन्निदमब्रवीत् - शोक सतंप्त होकर बोले
भावार्थ
उन सम्पूर्ण बंधुओं को उपस्थित देखकर अर्जुन करूणा से भऱ कर तथा शोक सतंप्त होकर बोला।1.27।
ਉਨਾਂ ਸਾਰੇ ਭਾਈਚਾਰੇ ਨੂੰ ਹਾਜਰ ਦੇਖ ਕੇ ਅਰਜੁਨ ਕਰੁਣਾ ਨਾਲ ਭਰ ਕੇ ਅਤੇ ਦੁੱਖ ਵਿੱਚ ਡੁੱਬ ਕੇ ਬੋਲਿਆ।1.27।
After seeing all the kin present there, Arjuna, overwhelmed with compassion and grief, said.।1.27।


अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् ॥२८॥
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ॥२९॥

शब्दार्थ
दृष्ट्वेमं- देखकर
स्वजनं - अपने लोग
कृष्ण - श्री कृष्ण
युयुत्सुं - युद्ध की इच्छा से
समुपस्थितम्- सब उपस्थित
सीदन्ति- शिथिल होना
मम गात्राणि - मेरे अंग
मुखं च - मुख
परिशुष्यति- सूख रहा है
वेपथुश्च- कम्पन
शरीरे मे - शरीर में
रोमहर्षश्च - रोमांच
जायते- हो रहा है
भावार्थ
अर्जुन ने कहा- हे श्री कृष्ण, युद्ध की इच्छा से उपस्थित अपने लोगों को देखकर मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं, मुख सूख रहा है, शरीर में कम्पन एवं रोमांच हो रहा है ।1.28,1.29।
ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਕਿਹਾ- ਹੇ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ, ਯੁੱਧ ਦੀ ਇੱਛਾ ਨਾਲ ਆਏ ਆਪਣੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਮੇਰੇ ਅੰਗ ਸ਼ਿਥਿਲ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ, ਮੂੰਹ ਸੁੱਕ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਸ਼ਰੀਰ ਕੰਬ ਰਿਹਾ ਹੈ ਤੇ ਰੋਮਾਂਚ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ।1.28,1.29।
Arjuna said: O Lord Krishna, seeing my friends and relatives present before me with a desire to fight, limbs of my body are quivering, mouth is drying up, body is trembling and my hairs are standing on ends.।1.28,1.29।


गाण्डीवं स्त्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ।
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः ॥३०॥

शब्दार्थ
गाण्डीवं - गांडीव नामक धनुष
स्त्रंसते - छुट रहा है
हस्तात्त्वक्चैव- हाथ से और त्वचा
परिदह्यते - बहुत जल रही है
न च - नही
शक्नोम्यवस्थातुं - स्थिर रह पा रहा हूं
भ्रमतीव - भ्रमित है
च मे मनः- और मेरा मन
भावार्थ
गांडीव हाथ से छुट रहा है और त्वचा जल रही है, मैं स्थिर नही रह पा रहा हूं और मेरा मन भ्रमित है।1.30।
ਤੀਰ-ਕਮਾਨ ਹਥੋਂ ਛੁੱਟ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਚਮੜੀ ਜਲ ਰਹੀ ਹੈ, ਮੈਂ ਟਿਕ ਨਹੀਂ ਪਾ ਰਿਹਾ ਅਤੇ ਮੇਰਾ ਮਨ ਉਲਝਣ ਵਿੱਚ ਹੈ।1.30।
My bow Gandiva is slipping from my hand, and my skin is burning. I am not able to stand on my own and my mind is confused.।1.30।


निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव ।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ॥३१॥

शब्दार्थ
निमित्तानि च - लक्षण भी
पश्यामि - देखना
विपरीतानि- उलटे
केशव - हे श्री कृष्ण
न च - नहीं
श्रेयोऽनुपश्यामि - शुभ नहीं देखता
हत्वा - मार कर
स्वजनमाहवे- युद्ध में अपने लोग
भावार्थ
हे केशव, सब लक्षण उलटे दिख रहे हैं और युद्ध में अपने लोगों को मार कर भी मैं शुभ नहीं देखता।1.31।
ਹੇ ਕੇਸ਼ਵ, ਸਾਰੇ ਲੱਛਣ ਉਲਟੇ ਦਿਖ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਕੇ ਵੀ ਮੈਨੂੰ ਸ਼ੁਭ ਨਹੀਂ ਦਿਸਦਾ।1.31।
O Lord Krishna, All indications are looking bad and I do not see any good coming, even after killing these people.।1.31।


न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च ।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा ॥३२॥

शब्दार्थ
न काङ्क्षे- इच्छा नहीं है
विजयं- विजयं
कृष्ण- श्री कृष्ण
न च राज्यं- न राज्य की
सुखानि च- न सुखों की
किं नो राज्येन- राज्य से क्या करें
गोविन्द - श्री कृष्ण
किं भोगैर्जीवितेन वा- भोगों और जीवन से
भावार्थ
हे श्री कृष्ण, मुझे विजयं की , राज्य की और सुखों की इच्छा नहीं है। हे गोविन्द, ऐसे राज्य, भोगों और जीवन का क्या करें (जो अपने सम्बन्धियों को मार कर मिले)।1.32।
ਹੇ ਭਗਵਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ, ਮੈਨੂੰ ਜਿੱਤ ਦੀ, ਰਾਜ ਦੀ ਸੱਤਾ ਤੇ ਸੁੱਖਾਂ ਦੀ ਇੱਛਾ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਹੇ ਗੋਬਿੰਦ ਅਜਿਹੇ ਰਾਜ, ਭੋਗਾਂ ਅਤੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਕੀ ਕਰਨਾ (ਜਿਹੜੀ ਆਪਣੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਕੇ ਮਿਲੇ)।1.32।
O Lord Krishna, I do not desire victory, kingdom and happiness. O Lord, what to do of such kingdom, life and material pleasure ( which comes after killing your own kinsmen).।1.32।


येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च ।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च ॥३३॥

शब्दार्थ
येषामर्थे - जिनके लिए
काङ्क्षितं - चाहते हैं
नो राज्यं - राज्य
भोगाः - भोगों
सुखानि च- सुखों
त इमेऽवस्थिता- वे खड़े हैं
युद्धे - युद्ध में
प्राणांस्त्यक्त्वा- प्राण की आशा त्याग
धनानि च- धन और
भावार्थ
जिनके भोगों और सुखों के लिए राज्य चाहते हैं वे सब धन और प्राण की आशा त्याग कर युद्ध में खड़े हैं।1.33।
ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਭੋਗ ਅਤੇ ਸੁੱਖ ਦੇਣ ਲਈ, ਕੋਈ ਵੀ ਰਾਜਪਾਟ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਸਾਰੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਤੇ ਧੰਨ-ਦੌਲਤ ਦੀ ਆਸ ਤਿਆਗ ਕੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਖੜੇ ਹਨ।1.33।
For whom we desire the kingdom, to give happiness and materialistic pleasure, those people are arrayed for battle here, leaving behind the desire for property and life.।1.33।


आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः ।
मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा ॥३४॥

शब्दार्थ
आचार्याः - आचार्य
पितरः - पिता समान
पुत्रास्तथैव च - और पुत्रों
पितामहाः- दादा
मातुलाः- मामे
श्वशुराः - ससुर
पौत्राः - पौत्र
श्यालाः- साले
सम्बन्धिनस्तथा- और संबंधी
भावार्थ
ये सब गुरुजन, पिता समान (चाचा-ताया), दादे, पुत्र समान, मामे, ससुर, पौत्र, साले और संबंधी हैं।1.34।
ਇਹ ਸਭ ਗੁਰੂ, ਪਿਤਾ ਸਮਾਨ (ਚਾਚਾ-ਤਾਇਆ), ਦਾਦੇ, ਪੁੱਤਰ ਸਮਾਨ, ਮਾਮੇ, ਸੋਹਰੇ, ਪੋਤਰੇ, ਸਾਲੇ ਅਤੇ ਸੰਬੰਧੀ ਹਨ।1.34।
These are all teachers, fathers, grandfathers, sons, maternal uncles, fathers-in-law, grandsons, brothers-in-law and relatives.।1.34।


एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन।
अपि त्रैलोक्यराज्स्यस्य हेतोः किं नु महीकृते॥३५॥

शब्दार्थ
एतान्न - इनको नहीं
हन्तुमिच्छामि - मारना चाहता
घ्नतोऽपि- मुझे मारने पर भी
मधुसूदन- श्री कृष्ण
अपि त्रैलोक्यराज्स्यस्य - मुझे तीनों लोकों के राज्य
हेतोः किं नु महीकृते- पृथ्वी के एक भाग के लिए नहीं
भावार्थ
हे श्री कृष्ण , मैं इनको नहीं मारना चाहता चाहे वे मुझे मार दें। चाहे तीनों लोकों (पृथ्वी, स्वर्ग,पाताल लोक) का राज्य मिले ( तो भी नही मारना चाहता) फिर सिर्फ पृथ्वी के एक भाग के लिए क्यों मारूंगा।1.35।
ਹੇ ਭਗਵਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ, ਮੈਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨਾ ਨਹੀਂ ਚਾਹੁੰਦਾ, ਚਾਹੇ ਇਹ ਮੈਨੂੰ ਮਾਰ ਦੇਣ। ਜੇਕਰ ਤਿੰਨਾ ਲੋਕਾਂ (ਧਰਤੀ, ਸਵਰਗ, ਪਤਾਲ ਲੋਕ) ਦਾ ਰਾਜ ਵੀ ਮਿਲੇ (ਤਾਂ ਵੀ ਮੈਂ ਮਾਰਨਾ ਨਹੀਂ ਚਾਹੁੰਦਾ), ਸਿਰਫ ਛੋਟੇ ਜਿਹੇ ਧਰਤੀ ਦੇ ਇਕ ਹਿੱਸੇ ਲਈ ਕਿਉਂ ਮਾਰਾਗਾਂ।1.35।
O Lord Krishna, I don't want to kill them even though they might kill me.Even if someone offers me kingdom of three worlds (then also I don't want to kill them), let alone a piece of earth.।1.35।


निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन ।
पापमेवाश्रयेदस्मान् हत्वैतानाततायिनः ॥३६॥

शब्दार्थ
निहत्य - मारकर
धार्तराष्ट्रान्नः- कौरवों को
का प्रीतिः- क्या प्रसन्नता
स्यात्- होगी
जनार्दन- श्री कृष्ण
पापमेवाश्रयेदस्मान् - पाप ही लगेगा
हत्वैतानाततायिनः- आततायियों ( दुष्टों को) मारकर
भावार्थ
हे श्री कृष्ण, कौरवों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी, दुष्टों को मारकर हमें पाप ही लगेगा।1.36।
ਹੇ ਭਗਵਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ, ਕੌਰਵਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਕੇ ਸਾਨੂੰ ਕੀ ਖੁਸ਼ੀ ਮਿਲੇਗੀ, ਦੁਸ਼ਟਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਕੇ ਸਾਨੂੰ ਪਾਪ ਹੀ ਲੱਗੇਗਾ।1.36।
O Lord Krishna, We will not get any happiness after slaying the Kauravas. We will only incur sin by killing these wicked people.।1.36।


तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव ॥३७॥

शब्दार्थ
तस्मान्नार्हा - किसी तरह ठीक नहीं
वयं - हम
हन्तुं - मारना
धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्- अपने बन्धु कौरवों को
स्वजनं हि - अपने ही लोग
कथं - कैसे
हत्वा - मार
सुखिनः -सुखी
स्याम - होंगे
माधव-श्री कृष्ण
भावार्थ
हे श्री कृष्ण, अपने ही बन्धु कौरवों को मारना किसी तरह से ठीक नहीं लगता। अपने ही लोगों को मारकर हम कैसे सुखी होंगे।1.37।
ਹੇ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ, ਆਪਣੇ ਹੀ ਸੰਬੰਧੀ ਕੌਰਵਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨਾ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਲਗਦਾ। ਆਪਣੇ ਹੀ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਕੇ ਅਸੀਂ ਕਿਵੇਂ ਸੁਖੀ ਹੋਵਾਂਗੇ।1.37।
O Lord Krishna, It does not looks right in any way to kill our own brothers, Kauravas. How will it make us happy by killing our own kinsmen.।1.37।


यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभो पहतचेतसः ।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ॥३८॥

शब्दार्थ
यद्यप्येते- यद्यपि
न पश्यन्ति- नहीं देखते
लोभो - लोभ से
पहतचेतसः- भ्रष्ट चित्त हुए
कुलक्षयकृतं- कुल के नाश में
दोषं- गल्ती
मित्रद्रोहे च- मित्रों को धोखा देने (मारने)
पातकम्- पाप
भावार्थ
यद्यपि वे लोभ से भ्रष्ट चित्त हुए, कुल के नाश में और मित्रों को मारने में पाप नहीं देखते।1.38।
ਭਾਂਵੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇਆਂ ਦਾ ਦਿਮਾਗ ਲੋਭ ਦੇ ਨਾਲ ਭ੍ਰਸ਼ਟ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ, ਸਿੱਟ੍ਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਕੁਲ ਦੇ ਨਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਮਿਤਰਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਪਾਪ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦੇ।1.38।
Even if these people, overtaken by corrupt and greedy mind do not see any fault in killing their own friends and destroying their clan.।1.38।


कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् ।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥३९॥

शब्दार्थ
कथं -किसी प्रकार
न ज्ञेयमस्माभिः- विचार क्यों न करें
पापादस्मान्निवर्तितुम् - पाप का निवारण
कुलक्षयकृतं -कुल के नाश से
दोषं- दोष को
प्रपश्यद्भिर्जनार्दन- जानते हैं, हे श्री कृष्ण
भावार्थ
हे श्री कृष्ण हम जो कुल के नाश से होने वाले दोष को जानते हैं, किसी प्रकार इस पाप के निवारण (न होने देने का) का विचार क्यों न करें।1.39।
ਹੇ ਭਗਵਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ, ਅਸੀਂ ਤਾਂ ਕੁਲ ਦੇ ਨਾਸ਼ ਨਾਲ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਦੋਸ਼ ਨੂੰ ਜਾਣਦੇ ਹਾਂ, ਤਾਂ ਅਸੀ ਇਸ ਪਾਪ ਨੂੰ ਹੋਣ ਤੋਂ ਰੋਕਣ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ।1.39।
O Lord Krishna, As we can see the repercussion of destroying a clan, why we don't think about preventing this sinful happening।1.39।


कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मो ऽभिभवत्युत॥४०॥

शब्दार्थ
कुलक्षये - वंश नाश से
प्रणश्यन्ति - नष्ट होते हैं
कुलधर्माः - कुलधर्म
सनातनाः -प्राचीन समय से
धर्मे - धर्म
नष्टे - नष्ट
कुलं - जाति
कृत्स्नमधर्मो ऽभिभवत्युत- सब तरफ अधर्म फैलता है भावार्थ
वंश नाश से, प्राचीन समय से चल रहे कुलधर्म नष्ट होते हैं, जिस से सब तरफ अधर्म (अनाचार) फैलता है।1.40।
ਵੰਸ਼ ਨਾਸ਼ ਨਾਲ, ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਚੱਲ ਰਹੇ ਕੁਲਧਰਮ ਨੱਸ਼ਟ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਭ ਪਾਸੇ ਅਧਰਮ ਫੈਲਦਾ ਹੈ।1.40।
By destruction of a clan, all family traditions are also vanquished. It facilitates the spreading of immorality and irreligion.।1.40।


अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुश्यन्ति कुलस्त्रियः ।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः ॥४१॥

शब्दार्थ
अधर्माभिभवात्कृष्ण - हे श्री कृष्ण, अधर्म के अधिक बढ़ने से
प्रदुश्यन्ति - दूषित हो जाती हैं (व्यभिचारिणी)
कुलस्त्रियः- कुल की स्त्रियाँ
स्त्रीषु - स्त्रियों
दुष्टासु - दुष्ट होने से
वार्ष्णेय - हे श्री कृष्ण
जायते - उत्पन्न होता है
वर्णसङ्करः- मिश्रित वर्ण
भावार्थ
हे श्री कृष्ण, अधर्म के अधिक बढ़ने से कुल की स्त्रियाँ व्यभिचारिणी और दुष्ट हो जाती हैं जिस से मिश्रित वर्ण की संतानें उत्पन्न होती है ।1.41।
ਹੇ ਭਗਵਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ, ਅਧਰਮ ਦੇ ਜਿਆਦਾ ਵੱਧਣ ਨਾਲ ਕੁਲ ਦੀਆਂ ਔਰਤਾਂ ਬੇਵਫਾ ਅਤੇ ਦੁਸ਼ਟ ਚਰਿਤੱਰ ਦੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਮਿਲੀ-ਜੁਲੀ ਸੰਤਾਨ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।1.41।
O Lord Krishna, When immorality increases, the women of the family become polluted and wicked which results in mixed progeny.।1.41।


सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिन्डोदकक्रियाः ॥४२॥

शब्दार्थ
सङ्करो - मिश्रित वर्ण
नरकायैव - नरक ले जाता है
कुलघ्नानां- वंश घातियों
कुलस्य च - और कुल को
पतन्ति - अधोगति में गिरते हैं
पितरो - पितर (वंशज जो मर चुके हैं)
ह्येषां - इन के
लुप्तपिन्डोदकक्रियाः- पिण्ड आदि की क्रिया लुप्त होना
भावार्थ
मिश्रित वर्ण, वंश घातियों को और कुल को नरक ले जाता है, पिण्ड तथा जलतर्पण की क्रिया लुप्त होने से पितर अधोगति (नीचे की योनियों) में गिरते हैं।1.42।
ਮਿਲੀ-ਜੁਲੀ ਔਲਾਦ, ਕੁਲ ਘਾਤੀਆਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਸਾਰੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਕੁਨਬੇ ਨੂੰ ਨਰਕ ਵਿੱਚ ਲੈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਪਿੰਡਦਾਨ ਅਤੇ ਜਲ ਚੜਾਉਣ ਦੀ ਕ੍ਰਿਆ ਅਲੋਪ ਹੋਣ ਨਾਲ, ਪਿਤਰ ਨੀਚੇ ਦੀਆਂ ਯੋਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਗਿਰ ਜਾਂਦੇ ਹਨ।1.42।
Mixed progeny causes hellish life both for the family and clan-killers. The ancestors of such families fall down, because the traditions for offering them food and water are vanished.।1.42।


दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः ।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ॥४३॥

शब्दार्थ
दोषैरेतैः - दोषों से
कुलघ्नानां - वंश घातियों के
वर्णसङ्करकारकैः- मिश्रित वर्ण से
उत्साद्यन्ते- नष्ट हो जाते हैं
जातिधर्माः - जातिधर्म
कुलधर्माश्च - कुलधर्म
शाश्वताः-सनातन
भावार्थ
मिश्रित वर्णी वंश घातियों के दोषों से सनातन जातिधर्म तथा कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं ।1.43।
ਮਿਲੀ-ਜੁਲੀ ਔਲਾਦਾਂ ਅਤੇ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਘਾਤੀਆਂ ਦੇ ਦੋਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਚਲੇ ਆ ਰਹੇ ਜਾਤੀ ਧਰਮ ਅਤੇ ਕੁਲਧਰਮ ਨਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ।1.43।
Misdeeds of mixed progeny and clan-killers destroy all the traditions of that clan, family and lineage.।1.43।


उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन ।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥४४॥

शब्दार्थ
उत्सन्नकुलधर्माणां- कुलधर्म नष्ट हो गया
मनुष्याणां - मनुष्यों का
जनार्दन- हे श्री कृष्ण
नरकेऽनियतं - सदा नरक में
वासो - वास
भवतीत्यनुशुश्रुम- ऐसा हम सुनते आए हैं
भावार्थ
हे श्री कृष्ण, जिन मनुष्यों का कुलधर्म नष्ट हो गया वो सदा नरक में वास करते हैं, ऐसा हम सुनते आए हैं ।1.44।
ਹੇ ਭਗਵਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ, ਅਸੀਂ ਇਸ ਤਰਾਂ ਸੁਣਿਆ ਹੈ, ਕਿ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦਾ ਕੁਲ ਧਰਮ ਨਸ਼ਟ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ, ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਨਰਕ ਵਿੱਚ ਵਾਸ ਕਰਦੇ ਹਨ।1.44।
O Krishna, I have heard that those who are bereft of family traditions, always dwell in hell.।1.44।


अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् ।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजन्मुद्यताः ॥४५॥

शब्दार्थ
अहो बत - आश्चर्य
महत्पापं कर्तुं - महान पाप करने को
व्यवसिता वयम्- तैयार हो गए हैं
यद्राज्यसुखलोभेन - राज्य और सुख के लोभ में
स्वजन्मुद्यताः हन्तुं - स्वजनों को मारने को तैयार
भावार्थ
आश्चर्य, हम राज्य और सुख के लोभ में स्वजनों को मारने के महान पाप करने को तैयार हो गए हैं ।1.45।
ਹੈਰਾਨੀ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ, ਅਸੀਂ ਰਾਜ ਅਤੇ ਸੁੱਖਾਂ ਦੇ ਲਾਲਚ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਹੀ ਬੰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਦੇ ਮਹਾਨ ਪਾਪ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਏ ਹਾਂ।1.45।
It is amazing that we are prepared to commit great sin of killing our own kinsmen, driven by the desire to enjoy royal kingdom.।1.45।


यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः ।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥४६॥

शब्दार्थ
यदि - यदि
मामप्रतीकारमशस्त्रं - मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करने वाले को
शस्त्रपाणयः - शस्त्रधारी
धार्तराष्ट्रा रणे- कौरव रण में
हन्युस्तन्मे -मार डालें
क्षेमतरं भवेत्- कल्याणकारी होगा
भावार्थ
यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करने वाले को, शस्त्रधारी कौरव रण में मार डालें, वह भी इस पाप से कल्याणकारी होगा।1.46।
ਮੈਨੂੰ, ਜਿਸ ਨੇ ਹਥਿਆਰ ਛੱਡ ਦਿੱਤੇ ਹੋਣ ਅਤੇ ਜਿਹੜਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਦੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਨਾ ਹੋਵੇ, ਜੇਕਰ ਹਥਿਆਰ ਯੁਕਤ ਕੌਰਵ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਮਾਰ ਵੀ ਦੇਣ ਤਾਂ ਵੀ ਅਜਿਹੇ ਪਾਪ ਤੋਂ ਚੰਗਾ ਹੋਵੇਗਾ।1.46।
(It will be ) Better for me if the armed Kauravas, were to kill me unarmed and unresisting on the battlefield (as compared to the killing of Kauravas by me and incurring a great sin).।1.46।


सञ्जय उवाच
एवमुक्तवार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् ।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ॥४७॥

शब्दार्थ
एवमुक्तवार्जुनः-इस प्रकार कहकर, अर्जुन
सङ्ख्ये - युद्धे
रथोपस्थ -रथ पर
उपाविशत् -बैठ गया
विसृज्य - त्यागकर
सशरं - बाणसहित
चापं - धनुष
शोकसंविग्नमानसः-शोक से उद्विग्न मन
भावार्थ
सञ्जय बोला , इस प्रकार कहकर, अर्जुन शोक से उद्विग्न मन से, धनुषबाण त्यागकर रथ पर बैठ गया।1.47।
ਸੰਜੇ ਨੇ ਕਿਹਾ, ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਹਿ ਕੇ, ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਦੁਖੀ ਹੋ ਕੇ, ਬੁਝੇ ਹੋਏ ਦਿਲ ਨਾਲ, ਤੀਰ-ਕਮਾਨ ਤਿਆਗ ਦਿੱਤਾ ਤੇ ਰੱਥ ਉਪਰ ਬੈਠ ਗਿਆ।1.47।
Sanjay Said, Arjuna, having thus spoken, cast aside his bow and arrows and sat down on the chariot, his mind overwhelmed with grief.।1.47।


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः। ॥1.1-1.47॥

Completed on 10 Nov 2014 (47 days)